हेलो दोस्तों आज की इस किताब becoming attached की इस बुक summary में हम आपको बताने वाले हैं की आखिर लेखक robert karen ने इस किताब के माध्यम से क्या बताने की कोशिश की है लेखक खुद एक मनौवैज्ञानिक प्रोफेसर हैं जो की डर्नर इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर भी हैं|
लेखक ने इस किताब के माध्यम से ये बताने की कोशिश की है की आखिर एक बच्चे और उसका पालन-पोषण, देखभाल करने वाले रिश्तो के बारे में बताया है की आखिर इनका एक बच्चे का इनके साथ जो रिश्ता है उस पर क्या असर पड़ता है इस किताब में लेखक के द्वारा एक मनौवैज्ञानिक रिसर्च के आधार पर प्रकाश डाला है |s
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Becoming Attached Book Summary In Hindi | Robert Karen Book Summary In Hindi
(1). रिश्तो का बच्चे के मन पर क्या असर पड़ता है :
कई समय से साइकोलॉजी के क्षेत्र में बहुत सुधार हुआ है जिससे बच्चो की देखभाल और परवरिश को लेकर कई गंभीर खुलासे हुए हैं और इन बातो पर भरोसा करना बहुत ही कठिन काम है |
अब आने वाले समय में आपको अपने बच्चो को एक मनौवैज्ञानिक रूप से देखंगे की आखिर आपका और आपके बच्चे के बीच कैसी bonding हैं |
कुछ गंभीर घटनाओं के चलते मनौवैज्ञानिको ने अपनी रिसर्च में बच्चो पर की गयी रिसर्च के नतीजो को समझाया है जिसे जानकर आप सीखेंगे की बच्चो और उनके परवरिश करने वालो के बीच किश तरह का रिलेशन है और उनके बीच के रिश्तो का क्या असर पड़ता है जिसे जानकर आप बच्चे की अच्छी परवरिश कर सकेंगे |
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(2). बच्चो और उनके पेरेंट्स और देखभाल करने वालो के बीच रिश्तो को अटैचमेंट कहते हैं :
एक बच्चा बचपन से ही जिसके साथ ज्यादा समय बिताता है यानी जो उसकी परवरिश करता है उसके साथ उसका एक अटूट रिश्ता बन जाता है और पूरी लाइफ उ=तक उस बच्चे की उस शख्स के साथ पूरी यादे जुड़ जाती हैं |
ज्यादातर वैसे भी एक माँ ही अपने बच्चे की परवरिश करती है और उनके बिच एक ऐसा रिश्ता बन जाता है जो की अटूट होता है एक बच्चे के साथ ये अटैचमेंट पहले साल से ही शुरू हो जाता है |
ऐसे कई तरह की स्टडी जहाँ पर सिर्फ इंसानों के अटैचमेंट की बात नहीं होती है बल्कि जानवरों पर भी कई रिसर्च कए गये हैं जहाँ उनमे भी काफी अटैचमेंट देखने को मिले हैं अटैचमेंट जैसे रिश्ते को हर किसी ने महसूस किया है |
(3). एक ऐसा वातावरण जहाँ एक बच्चा अपनी माँ के पास होने पर सुरक्षित महसूस करता है :
एक बच्चा जब कभी डर जाता है या अकेला महसूस करता है तो वो सीधा अपनी माँ को ही याद करता है क्योकि बच्चा अपनी माँ के पास रहना सबसे सुरक्षित समझता है जब वो चलना सीखता है तो आस-पास की चीजो को जांचने लग जाता है और जहाँ पर उसे लगता है की उसे परेशानी हो रही है वो तुरंत रोने लगता है |
एक बच्चा ज्यादा देर तक अपनी माँ से दूर नहीं रह सकता है आपने ये चीजे जानवरों के साथ भी देखी होगी की जानवरों के बच्चे भी अगर अपनी माँ से दूर हो जाए तो वे भी चिल्लाने लगते हैं |
रिसर्च करने वाले मनौवैज्ञानिक इस अवस्था को नेगेटिव अटेंशन सीकिंग कहते हैं ऐसा करके बच्चे अपनी माँ से बनी दूरियों की सीमा को देखते हैं जिससे उन्हें अंदाजा लगता है की वे अपनी माँ से कितना दूर होकर अकेला और खतरा महसूस करते हैं |
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(4). अपनी माँ से दूर होने पर बच्चे को परेशानी होती हैं :
अगर किसी माँ को उसके बच्चे से अलग कर दिया जाए या फिर एक बच्चे को भी उसकी माँ से अलग कर दिया जाए तो क्या होगा ?
पहले के समय डॉक्टर बच्चो को उनके पेरेंट्स से इन्फेक्शन के खतरे की वजह से नहीं मिलने दिया जाता था लेकिन अभी के समय ऐसा नहीं होता है |
जेम्स रोबर्टसन मदर चाइल्ड सेपरेशन के उपर की गयी रिसर्च में से एक है जिन्होंने उस परिस्थिति को समझकर डॉक्टर और हॉस्पिटल को अपनी पालिसी बदलने पर मजबूर कर दिया था ताकि कोई भी परेशानी उबर कर ना आये |
एक बार इसी तरह का प्रयोग किया गया जहाँ एक दो साल के बच्चे को उसकी माँ से कुछ दिनों के लिए अलग रखा गया और उसे सिर्फ कुछ मिनटों के लिए ही मिलने दिया जाता था जिसकी वजह से उस बच्चे के व्यवहार में काफी बदलाव देखने को मिले वो बच्चा काफी उदास रहने लगा शुरुआत में वो बच्चा काफी रोता था और फिर अपने पेरेंट्स को नजरअंदाज कर देता था |
उसके बाद उस बच्चे में बैचेनी और चिडचिडापन आने लगा| ऐसे हालातो में अगर बच्चे को उसके माँ से अलग रखा जाए तो वो बच्चे अपनी माँ को पहचाने ही नहीं और ऐसे में वो खाना पीना भी छोड़ देते हैं |
(5). मुख्यतः तीन तरह से अटैचमेंट स्टाइल हैं जो हमारे व्यवहार और अटैचमेंट के लिए हमारे रवैये को दर्शाते हैं :
जानी मानी चाइल्ड साइकोलोजिस्ट मैरी ऐन्स्वोर्थ ने एक बच्चे और माँ के बीच के रिश्ते को तीन भागो में बांटा है वैसे भी एक माँ अपने बच्चे की हर जरूरत को पूरा करने के लिए तत्पर रहती हैं इस अटैचमेंट को सिक्योर अटैचमेंट कहते हैं |
इसमें बच्चे का माँ अच्छे से देखभाल करती हैं बच्चे अपने माँ के पास सुरक्षित और खुश महसूस करते हैं और ना ही ज्यादा रोते हैं |
दूसरी अटैचमेंट स्टाइल है ambivalent अटैचमेंट, इस अटैचमेंट में बच्चे जब अपनी माँ के पास नहीं होते हैं तो काफी ज्यादा रोने लगते हैं और फिर उन्हें चुप कराना काफी मुश्किल हो जाता है ऐसे में माँ अपने बच्चे पर कभी कभी ध्यान देती हैं और कभी कभी अनदेखा कर देती हैं |
अब तीसरी अटैचमेंट स्टाइल है Avoidant Attachment जोकि किसी भी बच्चे के लिए ठीक नहीं है क्योकि इसमें माँ और बच्चे का मिलना जुलना बहुत कम होता है ऐसे बच्चो की माँ कोशिश करती हैं की उनके बच्चे उनके बिना रहना सीखे |
(6) : किसी भी बच्चे या पेरेंट्स के व्यवहार को देखकर ये बताना की वो किस अटैचमेंट स्टाइल में हैं :
जब आपको अटैचमेंट के बारे में पता चल गया है तो आपको ये देखना है की कौन सा बच्चा और पेरेंट्स किस अटैचमेंट स्टाइल को फॉलो करता है |
इसके लिए एक रिसर्च किया गया जहाँ एक बच्चे और उसकी माँ को एक कमरे में बैठाया गया जहाँ बच्चा खेल रहा था जहाँ बाद में माँ को बाहर निकालकर एक अनजान व्यक्ति को अंदर बैठाया जाता है ऐसा होने पर वो बच्चा रोने लगता है और बिलकुल भी शांत नहीं होता है |
जब उसकी माँ रूम में वापस आती है तो वो एकदम चुप हो जाता है बच्चे के इस बर्ताव को स्ट्रेंज सिचुएशन कहते हैं |
अगर बच्चा अपनी माँ को देखकर शांत हो जाता है तो उसे सिक्योर अटैचमेंट कहते है अगर बच्चा अपनी माँ को देखकर रोने और चिल्लाने लगता है तो उसे Ambivalent Attachment कहते हैं |
इसी तरह से हम पेरेंट्स के भी अटैचमेंट स्टाइल को परख सकते हैं |
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(7). बच्चो के अटैचमेंट स्टाइल पर पेरेंट्स के बर्ताव का बहुत असर पड़ता है :
अब हमे ये जानने की जरूरत है की इन अटैचमेंट स्टाइल में इतना फर्क क्यों है? कुछ मनौवैज्ञानिक इसे जेनेटिक भी कहते हैं या फिर इनकी दूसरी वजह भी हो सकती है |
एक इंटरव्यू में उन महिलाओं से सवाल किया गया जो माँ बनने वाली थी और रिसर्च में बताया गया की उनका उनके बच्चे के साथ व्यवहार कैसा होगा |
70-75% महिलाओं का अपने बच्चो के साथ व्यवहार वैसा ही था जैसा उनके पेरेंट्स का था ऐसे में कुछ महिलाए माँ बनने को उत्सुक थी भले ही कितनी भी परेशानी क्यों ना हो लेकिन वो महिला बिलकुल तैयार थी और उसका बच्चा एक सिक्योर अटैचमेंट में पला बढ़ा |
अगर पेरेंट्स को बच्चो के पालन-पोषण की शिक्षा दे तो इससे वे एक अच्छे पेरेंट्स बन सकते है |
(8). आप अपने बचपन में जैसे रहे होंगे, अपने बच्चो के साथ आपका व्यवहार वैसा ही रहेगा :
जब आप एक पेरेंट्स बन जाते है तो आपको कई बातो का ध्यान देना होता है आपको ये जान लेना पड़ता है की एक पैरेंट होना क्या होता है |
ऐसे समय में बच्चो को लेकर आपके क्या ख्याल है उसका बच्चो पर काफी असर पड़ता है इसके अलावा आपके बचपन के अनुभवों का भी बच्चो पर काफी असर पड़ता है |
जिन लोगो का बचपन बहुत बुरा बीता उन्होंने माना की वे ऐसा अपने बच्चे के साथ नहीं होने देंगे लेकिन कई लोगो को इन बातों का कोई एहसास नहीं होता है की उनका बीता हुआ समय कैसा था और वे अनजाने में कई गलतियां कर बैठते हैं |
अगर आपका बचपन बहुत कष्ट में बीता तो आप अपने बच्चो के साथ भ ऐसा नहीं कर सकते हैं बल्कि आपको उन बातो से सीखना है |
एक अच्छा पैरेंट बनने के लिए आपको काफी कुछ सीखना होगा शुरुआत में कुछ गलतियां हो सकती हैं लेकिन आपको उसमे भी सुधार करना है |
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Final Word :
एक बच्चे का बचपन जैसा बीतता है उसका उसके पूरे जीवन पर भी असर पड़ता है बच्चो का अपने पेरेंट्स के साथ कैसा व्यवहार है उनका कैसा रिश्ता है ये काफी matter करता है |
अपने बच्चो का हमेशा साथ देना चाहिए उसे क्या परेशानी हो रही है इन सभी बातो को आपको समझना है | दोस्तों Becoming attached book summary में लेखक ने काफी गंभीर मुद्दे पर बात की है जिस पर आज भी कई लोग अनदेखा करते हैं आपको भी पैरेंट बनने से पहले इस किताब को जरुर पढनी चाहिए |